Tuesday, June 12, 2012


यस्यां वृक्षा वानस्पत्या ध्रुवास्तिषठति विशवाहा



पृथिवीं विशवधायसं घृतामचछा वदामसि ॥



भावार्थ - वृक्ष और नाना प्रकार की वनस्पतियाँ सदा स्थिर

विराजती हैं। समस्त पदार्थों और समस्त जगत को धारण

करने वाली उस पृथ्वी की हम स्तुति करते हैं।

Friday, May 25, 2012

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Monday, May 21, 2012

Sunday, April 8, 2012



मेरा परिवार 


पापा कहते पढ़ो- लिखो पुस्तक लाओ पाठ सुनाओ |
माँ कहती है - सीधे बैठो यहाँ न शोर मचाओ |
भैया कहते -यहाँ न आओ भागो जाओ-जाओ |
दादा कहते- आओ बैठो हलवा पूरी खाओ |
दादी कहती- ऊपर आओ, अपनी नई पोएम सुनाओ |

Sunday, May 1, 2011

सफ़ाई अभियान

सुना है शहर में सफ़ाई अभियान चला है,
पता नहीं , यह क्या बला है।
भला सफ़ाई भी किसी को बताने कि जरुरत है,
यह तो हम सभी की आदत है ।
मुझे देखिए मैं भी बहुत सफ़ाई पसंद हूँ ,
घर और स्वयं को चमकाता हूँ,
और बाहर फेंकता सारा गंद हूँ।
मेरे घर में आपको एक तिनका भी न मिलेगा
मुझ पर इल्जाम लगाने के लिए एक पत्ता तक न हिलेगा।
वो तो भैया , बाहर गली में कूड़ा पड़ा है
और नालियों का पानी सारा सड़ा है,
कालोनी में कूड़ा , पर घर तो साफ़ है।
सफ़ाई कर्मचारी आते हैं और कहते हैं कि कूड़ा बाहर मत फेंकिए।
यदि कूड़ा बाहर न फेंके तो क्या इन्हें मुफ्त की पगार दें,
इनके आलसीपन को हवा दें।
नारों से सफ़ाई अभियान न सफ़ल होगा,
सख्ती से नियम लागू करना होगा।

हैं समझदार, स्वयं सोचिए आप।







Tuesday, April 26, 2011

क्या सोचता होगा स्टेशन





क्या सोचता होगा स्टेशन ?जब सभी रेलगाड़िया चली हैं जाती।
रह जाता सूना-सूना अपने अकेलेपन के साथ ।
सारे यात्री हो जाते रेलगाड़ी में सवार ,
छोड़ने आए सब चले जाते अपने घर-बार ,
उतरते यात्री नाचते-कूदते चले अपने सामान के साथ ।
फिर आई सुबह तीन बजे की बात वह करता था इंतजार लोगों के शोर का ,
थोड़ी देर बाद ही हो गई शोर की आस एक और छुक- छुक करती उम्मीद पहुंची उसके पास ।
फिर चली रेलगाड़ी लेकर लोगों को अपने साथ ।
नाचते- गाते ,सोते लोग छोड़ गए सूना-सूना स्टेशन ,
वह देखता है फिर किसी रेलगाड़ी के आने की राह।

विभोर

Wednesday, February 23, 2011

मेरे दादा-दादी



दादी मेरी सबसे न्यारी बातें करती प्यारी-प्यारी।
दादा मेरे इतने अच्छे प्यार करते उन्हें सब बच्चे।
पापा- मम्मी ऑफिस जाते दादा-दादी लाड लड़ाते।
अच्छी- अच्छी बातें बताते नए-पुराने किस्से सुनाते।
कभी परी लोक ले जाते तो कभी आजादी के दीवानों से मिलाते।
दादी मेरे लिए लड्डू बनाती दादा मुझे जलेबी खिलाते।
हर क्षण संस्कारों से पहचान कराते तभी तो हम अच्छे इंसान हैं बन पाते।
यदि हम उनके अनुभवों को जीवन में अपनाएं तो सदा आगे बढते हुए अपनी मंजिल पायें।
उनके होने से हैं घर-आँगन में बहारें इसीलिए तो मुझे अपने दादा-दादी हैं प्यारे।